حديث نظرة

" class="main-news-image img
id="cke_pastebin"> دارت بنا أعينها الخضراء.. 
تستجدي اهتمام.. 
تسألنا عن نبضنا..؟! 
عن الحياة التي تجمعنا.. 
وأين يكمن الإنسان..؟! 
وما درت تلك الشريدة.. 
والجريحة واليتيمة.. 
أن نظرتها هلاك.. 
وأن أعينها.. 
تقتلنا..
تكشف كذبنا.. 
ونفاقنا.. 
وتزييفنا الإنسان..! 
نظرتها.. 
فيها المواجع ناطقة.. 
أزرقها.. 
أخضرها.. 
بنيها.. 
وغدا مراراً قاتلاً عسليها.. 
 
نظراتها تقتلنا.. 
تستصرخ فينا الكرامة..
والنخوة..
ولا مجيب.. 
فلم تعد في حياتنا.. 
ألوان.. 
 تدثرنا السواد.. 
وغطانا الرماد..
وقنعنا بالرقاد.. 
.. 
لكنما يا صاح.. 
رغم هذا كله.. 
لا تبتئس.. 
فجرائم الإبادة.. 
التي لا تعرف الألوان.. 
أو تدرك الزمان والمكان..
تحيط بنا... 
دونما إعلان.. 
حتما تزول.. 
وتبقى ذاكرة الزمان.. 
 وتظل تجرحنا  
ماكان في الصادقة النظرات.. 
الواعدة بالآمال والأحلام.. 
الطفلة تسكنها..
توقد جذوتها.. 
تملؤها رجاءً.. 
تستنجد الإنسان.. 
وبصمتها.. 
وأنينها.. 
تموت دونما استئذان..!!

الحجر الصحفي في زمن الحوثي